दुर्गा पूजा 2025: 9 दिनों के शुभ मुहूर्त व सरल पूजा-विधि
प्रस्तावना
शारदीय नवरात्र/दुर्गा पूजा शक्ति-उपासना का सबसे बड़ा महापर्व है। 9 दिनों तक देवी के नौ स्वरूपों—शैलपुत्री से सिद्धिदात्री—की आराधना होती है और अंतिम दिवस पर विजय का उत्सव मनाया जाता है। 2025 में भी आप घर या पंडाल में अत्यंत सरल विधि से यह पूजा कर सकते हैं।
दुर्गा पूजा 2025
सार्वत्रिक शुभ समय (हर दिन के लिए मान्य):
- प्रातःकाल: सूर्योदय के बाद के 1–2 घंटे (घर की शुद्धि, संकल्प, मुख्य पूजन के लिए श्रेष्ठ)
- मध्याह्न/अभिजित काल: स्थानीय दोपहर के आसपास ~40–50 मिनट (शक्तिपाठ/हवन/नैवेद्य)
- सायंकाल/प्रदोष: सूर्यास्त से पहले-बाद का 1–1.5 घंटा (दीपदान, आरती, पुष्पांजलि)
- रात्रि-उपासना (इच्छानुसार): देवी कवच/सप्तशती/चालीसा पाठ
टिप: यदि किसी कारण एक समय न हो पाए तो उपरोक्त में से दूसरा/तीसरा समय चुनें। सोमवार/शुक्रवार की संध्या को दीपदान विशेष फलदायी माना जाता है।
पूजन-सामग्री (एक बार में तैयार कर लें)
कलश (ढक्कन/नारियल सहित), स्वच्छ जल, रोली/कुमकुम, हल्दी, अक्षत (चावल), दुर्वा/पान/बिल्वपत्र (क्षेत्रानुसार), लौंग-एलाइची, इत्र, सुपारी, मौली, पंचमेवा, फल-मिष्ठान, नैवेद्य के लिए खीर/हलवा/पुरी-चना (दिन-विशेष अनुसार), देसी घी/सरसों का तेल, रुई/बाती, धूप/अगरबत्ती, फूल-माला, लाल/पीला वस्त्र, आसन, हवन-सामग्री (नवमी के लिए), कन्या-पूजन (अष्टमी/नवमी) हेतु उपहार-वस्त्र/पूड़ी-हलवा-चना।
दुर्गा पूजा 2025
व्रत-नियम (संक्षेप में)
- सदाचार, सात्त्विक भोजन; प्याज-लहसुन, मद्य/मांस का त्याग।
- प्रतिदिन स्नान के बाद संकल्प लें, घर/पंडाल की शुद्धि करें।
- सुबह/शाम आरती; देवी सप्तशती/दुर्गा चालीसा/अथर्वशीर्ष में से जो संभव हो, नियमित पाठ।
- अष्टमी/नवमी को कन्या-पूजन व भोग का विशेष महत्व।
Day-by-Day: 9 दिनों का पूर्ण मार्गदर्शन
(देवी-स्वरूप, विधान, शुभ समय)
Day 1 — प्रतिपदा | माता शैलपुत्री
भाव: पर्वत-तनया शक्ति का उद्गम; स्थिरता और शुद्ध आरंभ।
विधि:
- घटस्थापना/कलश-स्थापन (प्रातःकाल): स्वच्छ स्थान पर चौकी बिछाएँ, लाल/पीला वस्त्र बिछाएँ, कलश में स्वच्छ जल, अक्षत, सुपारी, लौंग, इलायची डालें; नारियल/आम्र-पल्लव रखें।
- संकल्प: “मैं नौ दिनों तक माँ दुर्गा की उपासना करूँगा/करूँगी…।”
- ध्यान-पूजन: देवी का ध्यान, रोली-अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य।
अनुशंसित शुभ समय: प्रातः सूर्योदय के 1–2 घंटे भीतर उत्तम; न हो सके तो संध्या आरती में विशेष दीपदान करें।
भोग सुझाव: घी और चीनी से बने नैवेद्य।
Day 2 — द्वितीया | माता ब्रह्मचारिणी
भाव: तप, साधना, संयम से सिद्धि।
विधि:
- प्रातः स्नान, आसन-शुद्धि, संकल्प-पुनरावृत्ति।
- देवी को अक्षत, पुष्प, चंदन, धूप-दीप, शहद/मिश्री का नैवेद्य।
- जप/पाठ: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” (जितना संभव हो), ब्रह्मचारिणी स्तुति।
शुभ समय: प्रातः या मध्याह्न-उपासना (अभिजित काल के आसपास) में साधना उत्कृष्ट मानी जाती है।
भोग: मिश्री/शहद/गुड़ युक्त प्रसाद।
Day 3 — तृतीया | माता चंद्रघंटा
भाव: साहस, निडरता, रक्षा; नकारात्मकता का नाश।
विधि:
- देवी के समक्ष शंख/घंटी/ढोलक के साथ आरती, नेगेटिविटी दूर करने का संकल्प।
- घर/पंडाल में हल्का गंगाजल-छिड़काव, धूपन।
शुभ समय: संध्या-आरती में घंटनाद/धुनुची-नृत्य (क्षेत्रानुसार) विशेष मंगलकारी; प्रातः भी मुख्य पूजन करें।
भोग: दूध/खीर/मालपुआ (क्षेत्र परंपरा के अनुसार)
Day 4 — चतुर्थी | माता कूष्माण्डा
भाव: सृजन-ऊर्जा, उन्नति, नई शुरुआतों का आशीर्वाद।
विधि:
- देवी को हरे/पीले फल-फूल अर्पित करें; कार्य/व्यवसाय/स्टडी-प्लान का संकल्प लें।
- परिवार/टीम के साथ सामूहिक आरती, सकारात्मक लक्ष्य-लेखन।
शुभ समय: प्रातः-पूजन के साथ मध्याह्न में छोटा-सा संकल्प-हवन (यदि संभव) या दीप-मंत्र-जप।
भोग: मालपुआ/खीर/सत्विक मीठा।
Day 5 — पंचमी | माता स्कंदमाता
भाव: मातृत्व-करुणा, संतान-प्राप्ति/समृद्धि का आशीष।
विधि:
- बच्चों/परिजनों के साथ सामूहिक पाठ; शिक्षा-उन्नति का संकल्प।
- देवी को केले/साबूदाना/हलवा का भोग।
शुभ समय: प्रातःकाल श्रेष्ठ; संध्या को परिवार-आरती व पुष्पांजलि।
विशेष कर्म: विद्यार्थियों के लिए पुस्तक-पूजन/स्टडी-डेस्क की शुद्धि।
Day 6 — षष्ठी | माता कात्यायनी (दुर्गा पूजा की औपचारिक शुरुआत बंगाल परंपरा में)
भाव: वीर्य-शौर्य, बाधा-निवारण, विवाह-योग की सिद्धि।
विधि:
- आमंत्रण/कल्पारंभ (घरेलू रूप में): संक्षिप्त आवाहन—“हे माँ कात्यायनी, कृपा करें…”
- साधना में 11/21 माला बीज-मंत्र (जितना संभव) या दुर्गा सप्तशती की परिचयिक अध्याय-पाठ।
शुभ समय: प्रातः और संध्या—दोनों उचित; जो भी संभव हो नियमित रखें।
भोग: शहद/चीनी युक्त भोग, या खिचड़ी-भोग (क्षेत्रानुसार)।
Day 7 — सप्तमी | माता कालरात्रि
भाव: भय-निवारण, शत्रु/रोग/ऋण से मुक्ति।
विधि:
- सरसों के तेल/घी के दीपक से आरती; घर-द्वार पर हल्का नमक/गंगाजल छिड़क कर नकारात्मकता दूर करने का संकल्प।
- परिस्थितियों से लड़ने का हौसला माँगें; ध्यान-जप।
शुभ समय: सायंकाल/प्रदोष में दीपदान विशेष फलदायी; प्रातः मुख्य पूजन अवश्य।
भोग: गुड़/चना/मीठा पोंगल/सत्तू (क्षेत्र-रूढ़ि के अनुसार)।
Day 8 — अष्टमी | माता महागौरी (कुमारी-पूजन का प्रमुख दिन)
भाव: पवित्रता, सौभाग्य, शांति-समृद्धि।
विधि:
- प्रातः-पूजन के बाद कन्या-पूजन (1, 5, 7, 9—जितनी उपलब्ध हों): चरण-धोवन, तिलक, पुष्प-माला, उपहार वस्त्र/दक्षिणा, पूड़ी-हलवा-काला चना का भोग।
- संधि-काल के आसपास (अष्टमी-नवमी संधिकाल का पारंपरिक महत्व): अतिरिक्त दीप/पुष्प अर्पण, नकारात्मकता-नाश का भाव।
शुभ समय: प्रातः कन्या-पूजन; संध्या में आरती/दीपमाला।
भोग: पूड़ी-हलवा-चना, नारियल-लड्डू/खीर भी दे सकते हैं
Day 9 — नवमी | माता सिद्धिदात्री
भाव: सिद्धि, पूर्णता, कार्य-सिद्धि का आशीर्वाद।
विधि:
- नवमी-हवन (घरेलू सरल रूप):
- हवन-कुंड/फायर-सेफ धातु पात्र रखें; आम/पीपल सूखी-लकड़ी/हवन-समग्री; घी-आहुति।
- “स्वाहा” के साथ संक्षिप्त आहुतियाँ; परिवार के नामों/इच्छाओं का संकल्प-उच्चारण।
- समापन-आरती, प्रसाद-वितरण।
शुभ समय: मध्याह्न/अभिजित के आसपास हवन; प्रातः-संध्या में नियमित पूजन-आरती भी करें।
भोग: खीर/पंचमेवा, नारियल-भोग।
दुर्गा पूजा 2025 (षष्ठी-दशमी) — पंडाल परंपरा का सार
यदि आप बंगाल/पूर्वी भारत की शैली से करते हैं, तो मुख्य उत्सव षष्ठी (Day 6) से आरंभ होकर दशमी तक चलता है।
- षष्ठी: देवी-आवहन, पंडाल-पूजन, ढाक-धुन, सांस्कृतिक कार्यक्रम।
- सप्तमी: नवपत्रिका/कोलाबोऊ (क्षेत्रानुसार), पुष्पांजलि।
- अष्टमी: महाआरती, कुमारी-पूजन, संधि-अर्चना का विशेष महत्त्व।
- नवमी: हवन/महाभोग, आयुध-पूजा (कुछ क्षेत्रों में शस्त्र-पूजन)।
- दशमी (विजयादशमी): सिंदूर-खेला (महिलाएँ), विसर्जन व “शुभो विजय”/विजय अभिनंदन।
दशमी के दिन (समापन-विधि):
- देवी से क्षमायाचन—“पूजा में त्रुटि हुई हो तो क्षमा करें।”
- कलश-जल को तुलसी/वृक्ष/घर के पवित्र स्थान में विधिपूर्वक अर्पित करें।
- प्रसाद-वितरण, बड़ों का आशीर्वाद, कन्याओं/पुजारी/सेवकों का सम्मान।
दुर्गा पूजा 2025
घर/पंडाल सज्जा व सांस्कृतिक सुझाव
- रंग-थीम: लाल-गेरुआ-पीला (शक्ति/आनंद के रंग)।
- दीपमाला: दरवाज़ों/खिड़कियों पर छोटी-छोटी दीपपंक्तियाँ, रात्रि-उपासना में अद्भुत वातावरण।
- अल्पना/रंगोली: प्रवेशद्वार पर माँ के चरण/त्रिशूल/कमल की अल्पना।
- संगीत: शंख-निनाद, ढाक/नगाड़ा/घंटी; आरती के समय ध्वनि-वातावरण शुद्ध करता है।
- सामाजिक सेवा: अन्न-दान, वस्त्र-दान, गौ-सेवा/पशु-जलपान—उत्सव का वास्तविक पुरुषार्थ।
पारिवारिक/व्यक्तिगत संकल्प-विचार
- स्वास्थ्य: “मैं रोज़ 20-30 मिनट साधना/योग/वॉक करूँगा/करूँगी।”
- आर्थिक अनुशासन: अनावश्यक ऋण/खर्च में कटौती; दान-दक्षिणा का बजट।
- सीख-अध्ययन: प्रतिदिन 1 अध्याय/1 कौशल; विद्यार्थियों के लिए “डेली स्टडी आवर”।
- रिश्ते: हर दिन एक-दो रिश्तेदार/मित्र को शुभकामना देना—ऊर्जा का आदान-प्रदान बढ़ता है।
प्रश्नोत्तर (FAQ)
1) क्या 9 दिनों में रोज़ हवन आवश्यक है?
नहीं, रोज़ अनिवार्य नहीं। सामान्यतः नवमी को हवन किया जाता है; बाकी दिनों में दीप/धूप/जप पर्याप्त हैं।
2) अगर सुबह पूजा न हो पाए तो?
संध्या/प्रदोष का समय भी अत्यंत शुभ है। एक समय नियमित रखें—नियमितता ही साधना की शक्ति है।
3) क्या कन्या-पूजन केवल अष्टमी को करें?
परंपरा से अष्टमी प्रमुख है; कई परिवार नवमी को भी करते हैं। परिस्थितिनुसार एक दिन चुन लें।
4) क्या पूजन-सामग्री की कमी हो तो पूजा अधूरी मानी जाएगी?
भाव सर्वोपरि है। जो सुलभ हो, उसी से शुद्ध मन से अर्पण करें।
समापन: दुर्गा पूजा 2025 का आपका सरल प्लान
- Day 1 घटस्थापना व संकल्प,
- Day 2–5 साधना-सुदृढ़ीकरण (ब्रह्मचारिणी से स्कंदमाता तक),
- Day 6–9 उत्कर्ष (कात्यायनी-कालरात्रि-महागौरी-सिद्धिदात्री),
- दशमी पर मंगल-समापन/विसर्जन।
हर दिन प्रातः/अभिजित/सायंकाल की किसी एक समय-खिड़की में नियमित पूजा, आरती, जप—यही आपके लिए 2025 में “विजय” का सूत्र बनेगा।
शुभकामनाएँ! माँ दुर्गा से प्रार्थना है कि 2025 में आपके घर-परिवार पर स्वास्थ्य, समृद्धि और सौभाग्य की वर्षा हो।
Very informative 🙏🙏🙏
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Nice post